'शीतलवाणी' : एक संकल्प यात्रा
'शीतलवाणी' हिन्दी त्रैमासिक एक साहित्यिक पत्रिका है। सहारनपुर से प्रकाशित इस पत्रिका का सफ़र क़रीब 38-39 साल पुराना है। वर्ष 1981 में इसका प्रकाशन एक साप्ताहिक समाचार पत्र के रुप में प्रारंभ किया गया था। क़रीब तीन वर्ष तक प्रकाशन के बाद पत्र का प्रकाशन कुछ अपरिहार्य कारणों से उस समय बंद हो गया था। साल 2008 में इसका प्रकाशन पुनः प्रारंभ किया गया। इस बार प्रकाशन प्रारंभ करने का उद्देश्य था- हिन्दी को समृद्ध करने के साथ-साथ नये रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराना तथा हाशिए पर चले गए दिवंगत प्रख्यात साहित्यकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व को सामने लाते हुए उन पर विशेषांक प्रकाशित करना, ताकि उन साहित्यकारों पर शोध करने वाले शोधार्थियों को एक ही स्थान पर अधिक से अधिक शोध सामग्री उपलब्ध हो सके। ऐसे साहित्यकारों में शैलियों के शैलीकार पद्मश्री डॉ.कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, प्रख्यात कवि एवं चित्रकार शमशेर बहादुर सिंह, प्रख्यात भाषाविद् व व्याकरणाचार्य और कामायनी मर्मज्ञ डॉ.द्वारिका प्रसाद सक्सेना, सुविख्यात रंगकर्मी, कथाकार व उपन्यासकार डॉ.लक्ष्मी नारायण लाल, जाने-माने आलोचक कमला प्रसाद आदि शामिल हैं। बाद में पाठकों के सुझाव पर वर्तमान में सृजनरत कुछ साहित्यकारों पर भी विशेषांक प्रकाशित किए गए। ऐसे साहित्य मनीषियों में चर्चित कवि, कथाकार व पत्रकार उदय प्रकाश, वरिष्ठ कथाकार व उपन्यासकार से.रा.यात्री, देश के जाने माने और चर्चित कवि नरेश सक्सेना, हिन्दी ग़ज़ल के प्रख्यात हस्ताक्षर व हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल, संस्मरण लेखक, कवि, चित्रकार व कुशल प्रशासक आर पी शुक्ल आदि शामिल हैं। साल 2008 से प्रारंभ हुआ ये सिलसिला आज भी निरंतर जारी है।
इसके अतिरिक्त देश के अनेक स्थापित व चर्चित रचनाकारों के साथ-साथ 'शीतलवाणी' में नये हस्ताक्षरों की कहानियां, संस्मरण, गीत, कविताएं, नयी कविता, मुक्तक, ग़ज़ल, दोहे, हाइकु आदि हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं को बडे़ सम्मान के साथ स्थान दिया गया है। पुस्तक व पत्रिकाओं की समीक्षा के अलावा साहित्यिक गतिविधियों को भी शीतलवाणी में निरंतर प्रकाशित किया जाता रहा है। अपने सीमित संसाधनों के चलते हम अपने सम्मानित रचनाकारों को उनकी रचनाओं पर कोई पारिश्रमिक या मानराशि तो नहीं दे सके लेकिन हमारी कोशिश उन्हें यथोचित सम्मान देने की अवश्य रही है।
अपने इस सफ़़र में हमें अनेक चुनौतियों, विशेषकर आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। चूंकि 'शीतलवाणी' को न तो किसी पूंजीपति का संरक्षण प्राप्त है और न ही किसी सरकारी संस्थान/प्रतिष्ठान का। केवल अपने पाठकों व रचनाकारों का स्नेह व विश्वास, कुछ शुभचिंतकों का सहयोग और अपने संकल्प के प्रति हमारी प्रबल इच्छा शक्ति ने ही हमें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। हमें आशा है कि अपने प्रिय पाठकों और रचनाकारों का सहयोग भविष्य में भी हमें संबल देता रहेगा। -डॉ. वीरेन्द्र आज़म, संपादक